वैभव लक्ष्मी व्रत कथा: पूजा करते समय अवश्य पढ़ें, मां लक्ष्मी की बनी रहेगी कृपा

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा: एक बड़ा शहर था। इस शहर में न जाने कितने लोग रहते थे। देश के कोने-कोने से रोज़गार की तलाश में आए लोग जब इस शहर में आते थे तो उनके पास कुछ भी तो नहीं होता था। उनकी एक मात्र यही इच्छा रहती थी कि उनको किसी तरह से भी दो समय की रोटी मिल जाए। मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट पाल लें, बस प्रभु के गुण गाएं।

वैसे तो देखा जाए तो मानव की इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती। शुरू में वह यही सोचता है कि उसे दो समय की रोटी मिल जाए। प्रभु की यही सबसे बड़ी कृपा होगी। इसी के लिए वह मंदिरों में जाते हैं, तीर्थ यात्रा करते हैं तथा कथा सुनते हैं। और जब उन्हें दो समय की रोटी मिलने लगती है तो उन के मन में कुछ विचार उठने लगते हैं जैसे उनकी आय बढ़े, उनके पास धन हो, रहने के लिए बढ़िया मकान हो, पहनने के लिए अच्छे कपड़े हों, सवारी के लिए कार हो या स्कूटर ही हो ।

रोटी मिलने के पश्चात् उनकी लालसा बढ़ती जाती है। किसी ने ठीक ही कहा है। भूख की एक सीमा है, जिसे खाना खाते ही पूरा कर लिया जाता है परन्तु लालसा की तो कोई सीमा नहीं। मानव जीवन की भी एक सीमा है। लाखों, करोड़ों के सपने, सुख, शांति और मौज-मस्ती की आशाओं की लालसा करने वाला इंसान यह भूल जाता है कि यह द्वार उसे मृत्यु की ओर लिए जा रहा है।

मानव जीवन इतना बड़ा कहां है, जिस पर हम भविष्य का इतना बड़ा बोझ लाद देते हैं। हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार में अंधे होकर उस प्रभु, उस महाशक्ति को भी भूल जाते हैं, जिसने इस संसार को जन्म दिया है, जो जीवन देता है और वही मृत्यु भी देता है। कलयुग में तो ऐसा ही होता है। पाप की परछाइयां लंबी और गहरी होना शुरू हो जाती हैं। धर्म व्यापार बन जाता है। अधर्मी खूब फलते-फूलते हैं।

इस बड़े शहर में तो धर्म कम और अधर्म अधिक था। इसी शहर के एक मुहल्ले में राधा और गोपाल पति-पत्नी के रूप में रहते थे। उनका छोटा सा घर था। यानी घर के नाम पर एक कमरा था। उसी में रसोई, उसी में सोना, उसी में खाना-पीना। यही था उनका घर। गोपाल किसी मिल में नौकरी करता था। राधा घर का सारा काम-काज करती थी। उसने अपने छोटे से घर को भी इतना साफ-सुथरा व सजा रखा था कि मुहल्ले की औरतें अक्सर कहती थीं, ‘घर की सफाई रखना तो कोई हमारी राधा बहन से सीखे।’

यह बात तो राधा भी जानती थी कि इस शहर में अच्छे लोग कम और बुरे अधिक हैं। उसी के अड़ोस-पड़ोस में कुछ औरतें ऐसी थी कि जो दिन भर एक-दूसरे की चुगलियां करती थीं। दूसरों के घर में झांक कर उनकी बुराईयां ढूंढना तो उनका सबसे पहला काम था। अपने घर की भले ही उनको कोई खबर न हो मगर पूरे मुहल्ले की खबर तो उनके पास यूं रहती थी जैसे मोहल्ले की डायरी लिखने का काम प्रभु ने उन्हें सौंप रखा हो।

राधा को उनकी यह बातें पसंद नहीं थी। पहले तो उसे घर के काम-काज से ही समय नहीं मिल पाता था। दूसरा पति की सेवा करना उसका थर्म था। पति की लंबी आयु और उन्नति के लिए ईश्वर की उपासना करती। हर मंगलवार को महावीर जी का व्रत अपने पति की चिर (लम्बी) आयु के लिए रखती।

मोहल्ले की चुगलखोर औरतों को राधा की अच्छी आदतें कैसे पसंद आ सकती थी। वे तो यह कहने लगी थीं कि राधा में बड़ी अकड़ है, जो किसी से बात करना पसन्द नहीं करती। शायद इसलिए न कि वह बड़ी सुन्दर है। उसे अपनी सुंदरता पर बड़ा गर्व है। उसे यह नहीं पता कि जिसे मोहल्ले में रहते हैं वहां सबसे मित्रता करते हैं। उनके साथ मिलकर बैठते हैं। यदि वह ही किसी के पास दुःख-सुख बांटने नहीं जायेगी तो कल को उसके पास कौन आएगा।

इन सबकी बड़ी बहन राम भजनी थी जो पूरे मोहल्ले को अपनी अंगुलियों पर नचाती थी। बहन राम भजनी ने अपनी ही एक कीर्तन मंडली बना रखी थी, जो घर-घर में जाकर कीर्तन करती थी। राधा को ऐसी औरतें बिल्कुल पसंद नहीं थीं जो कीर्तन करते समय भी एक-दूसरे की चुगलियां करती हो। यही कारण था कि राधा ने कई बार उनको टोकते हुए कह ही दिया था- देखो बहन राम भजनी, वैसे तो आपका नाम है राम भजनी, मैं आपके हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूं कि पूजा एवं कीर्तन करते समय किसी की चुगली मत किया करो, किसी की बुराई करने से तो अच्छा है, आप उस समय में प्रभु का नाम लें। इससे आपका जीवन भी सफल होगा व बुराई से भी बच जाओगी।

राधा की इतनी बात सुनते ही राम भजनी को क्रोध आ गया। क्रोध के मारे उसके चेहरे का रंग लाल हो गया। वह कड़क कर बोली, ओ कल की छोकरी, क्या तू मुझे बताएंगी कि मुझे क्या करना है? अभी शहर में आए दो साल हुए हैं। गांव का गोबर अभी हाथों से उतरा नहीं और हम शहर वालों को अक्ल सिखाने लगी है। गंवार कहीं की।

देखो बहन, मैं गंवार हूं या कुछ और, मैं प्रभु भक्ति में पूरा विश्वास रखती हूं। मैं यह अच्छी तरह जानती हूं कि भक्ति में ही शक्ति है। भक्ति ढोलकियां, चिमटे बजाने से नहीं होती बल्कि सत्य के पथ पर चलने से होती है।

ईश्वर का यही सिद्धांत है, यही शिक्षा है कि किसी का बुरा मत करो, मैं तो हर जीवात्मा में रहता हूँ। तुम मेरी तलाश में क्यों भटक रहे हो। यदि तुम सत्य और विश्वास का सहारा लेकर अपनी • आत्मा में मुझे तलाश करोगे तो मैं तुम्हें आवश्य मिलूंगा।

इस बात को सुनकर वह राम भजनी और उसकी साथी सब मिलकर राधा का मज़ाक उड़ाने लगी थीं। राधा जानती थी, ये लोग पाप करने वाले हैं। इनकी पूजा तो केवल ढोंग है, दिखावा है, इनके मन काले हैं, खोटे हैं। इनसे अधिक बोलने का कोई लाभ नहीं। इनकी कीर्तन मंडली खूब धन कमा लेती है। ईश्वर के नाम पर व्यापार……. दुर्गा के नाम पर लूट….. छी…. छी….. छी…. घिन होने लगती थी राधा को इन सबसे। उसने अपने घर में पूजा- पाठ करना शुरू कर दिया। इन लोगों से दूर रहने लगी।

उधर गोपाल बुरी संगत में पड़कर शराब पीने लगा, जुआ खेलने लगा। गांव से आया सीधा-साधा गोपाल शहर के साथियों में ऐसा फंसा कि उसे बुरी आदतें लग गई। शुरू-शुरू में उसने अपने आपको बहुत बचाने का प्रयास किया लेकिन जब चारों ओर ही आग लगी हो, वह कब तक बच सकता था।

एक मजदूर का वेतन ही कितना होता है। सारा महीना मेहनत करने पर जो कुछ उन्हें मिलता था, उससे घर की दो समय की रोटी ही चल सकती थी। मकान का किराया, दुनियादारी, कपड़े-लत्ते। यह सब कुछ उस वेतन से ही तो चलता था। लेकिन जब इस वेतन से शराब पी जाए, चरस, गांजा पिया जाए। जुआ खेला जाए तो घर कैसे चलेगा?

राधा बेचारी बहुत दुःखी हो गई। अंदर ही अंदर घुलने लगी। पति को मना करती तो उल्टी उसे मार पड़ती। गालियां सुनने को मिलतीं। घर में आकर वह इतना हो-हल्ला करता कि लोगों को उनका मज़ाक उड़ाने का मौका मिलता।

वह अंदर-अंदर टूटने लगी। हर समय उदास रहने लगी। अपने मन की आग को शांत करने के लिए आंसू बहाती रहती। इस परदेस में उसका कौन था, जो उसे सहारा देता।

वह तो अकेली पड़ गई थी। आ-जाकर उसे प्रभु का ही आसरा था। मां दुर्गा ही उसे सहारा देगी। मां लक्ष्मी तो इस घर से रूठ चुकी थी। इतने बड़े संकट में भी उसने प्रभु का विश्वास नहीं छोड़ा। मां दुर्गा की उपासना नहीं छोड़ी। उसे पूर्ण विश्वास था कि एक दिन मां उसके सारे संकट दूर करेंगी।

एक दिन जब घर में खाने को कुछ नहीं बचा था। वह दो दिन से भूखी थी। जिस दुकान के खाने-पीने का सामान उधार मिलता था, उसने इस लिए उधार देने से मना कर दिया क्योंकि उसके पिछले रुपये ही नहीं दिए गए थे। इस युग में तो जिसके पास लक्ष्मी नहीं वह भूखा मर जाएगा।

राधा, माँ लक्ष्मी के चित्र के आगे हाथ जोड़े बैठी रो रही थी। मां ने उसकी आंखों से टपकते आंसू देख लिए थे। उसके हृदय में दुःख जान लिए थे। राधा रोए जा रही थी। साथ वह माँ लक्ष्मी का पूजन भी कर रही थी।

माँ लक्ष्मी…. मुझे बचा लो मां…. . मुझे बचा लो…. देखो मेरे घर की क्या हालत हो गई है। मैं दो दिन से भूखी हूं……. मेरा पति बिगड़ चुका है घर में लक्ष्मी जी आप बैठी हैं परन्तु आपका दूसरा स्वरूप जो इस संसार में माया का है। वह इस घर में नहीं है। उसके बिना जीवन नहीं ….. मां


मुझे बचा लो मां………..मुझे बचा लो
मां शक्ति दो ……….शक्ति दो मां

मां लक्ष्मी कृपा करो इस घर को बचा लो मां अब आप ही मेरा अंतिम आसरा हो तुमने मुझे न बचाया तो मैं तुम्हारे चरणों में ही जान दे दूंगी। अब तो मेरा यह अंतिम निर्णय है …..यह कहती हुई राधा मां लक्ष्मी के चित्र के आगे गिर गई

उसी समय घंटियां बजने लगीं। शंख की आवाज़ आने लगी। राधा के उदास चेहरे पर अपने आप खुशी की लहर दौड़ गईं। तभी उसके कानों में आवाज़ आई, “बेटी राधा ! तुम्हारी अराधना सफल हो गई है। तुमने इतने बड़े संकट में भी मुझ पर से विश्वास नहीं छोड़ा। अपनी श्रद्धा में कमी नहीं आने दी। इसलिए मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ।”

राधा एक तो तू पतिव्रता धर्म में पूरी उतरी है, अपने पति की सेवा में कोई कमी नहीं रखी।

दूसरा, तूने मुझ पर से विश्वास नहीं छोड़ा। यह सब तेरी अग्नि परीक्षा ही थी। जिस में तू पूरी उतरी है।

हे जगत माता मैंने आपसे आज तक कुछ नहीं मांगा। परन्तु आज मैं मजबूर हो गई हूं मां आज पहली बार आपसे इस घर की खुशियां मांग रही हूं मां

मुझे धनवान बनने की कोई लालसा नहीं. मुझे तो जीने के लिए धन की जरूरत है जिससे हम खाना खा सकें मेरे बिगड़े हुए पति को सुधार दो माँ

जाओ बेटी अपने को संभालो ! मैं तुम्हारी मनोकामना पूरी करने के द्वार खोल रही हूं। उठो! अपने घर के द्वार खोलो। राधा के अंदर न जाने कहां से अनजानी शक्ति आ गई थी। वह मां लक्ष्मी के चरणों से उठ कर अपने घर के द्वार की ओर गई तो सामने ही एक तिलकधारी ब्राह्मण को खड़े पाया।

बेटी राधा ……जय मां लक्ष्मी जी बोलो
! जय मां लक्ष्मी …….राधा ने पूरी शक्ति से कहा।

देखो बेटी ! मैं मां लक्ष्मी जी के मंदिर का पुजारी हूं। मां के आशीर्वाद से यह दो बोरी आटा और साथ में दालें और घी यह सब खाने की सामग्री घर पहुंचाने के आदेश हुए हैं।

आप धन्य हैं महाराज …..आप धन्य हैं…….मां लक्ष्मी के पुजारी होने के नाते मैं आपके चरण छूती हूं महाराज और आप से यह प्रार्थना करती हूं कि मुझे यह संकट से निकालने का उपाय भी बताओ। देखो बेटी ! इस माया रूप संसार में सुख प्राप्त करने लिए अपने मन को शुद्ध और आत्मा को पवित्र रखना पड़ता है। माया (लक्ष्मी) जी को तिजोरियों में बंद रखने वाले पापी होते। हैं। यदि तुम अपने मन की शांति और घर-गृहस्थी चलाने के लिए लक्ष्मी जी को प्राप्त करना चाहती हो तो मां वैभव लक्ष्मी व्रत करो। इस व्रत के करने से आपकी हर मनोकामना पूरी होगी। तुम्हारे सारे संकट दूर हो जाएंगे।

लेकिन पुजारी जी ! मुझे वैभव लक्ष्मी व्रत कथा की विधि तो बता दो। मैं तो मां की उपासना बचपन से ही कर रही हूं पर वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि मुझे नहीं पता। देखो बेटी! लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। इसे वैभव लक्ष्मी व्रत कहा जाता है। जो प्राणी सच्चे मन से इस व्रत को कर लेता है। उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। उसे हर प्रकार के सुख, सम्पत्ति प्राप्त होती है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से ही इसका फल मिलता है। जो लोग इस व्रत को विधिपूर्वक नहीं करते उन्हें कोई फल नहीं मिलता बल्कि वे अपने मन की शांति खो बैठते हैं।

कई पाखंडी और धोखेबाज़ यह कहते फिरते हैं कि सोने के गहने की हल्दी, कुमकुम से पूजा करो, बस व्रत हो गया। परन्तु ऐसा है नहीं। कोई भी व्रत जब तक अपनी विधि अनुसार नहीं किया जाता, उसका फल शून्य ही तो मिलेगा। यह सब कुछ अपने आप पर निर्भर करता है। वैसे घर में यदि सोना है तो व्रत रख कर उसकी उपासना ज़रूर करें।

वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि इस प्रकार है:

वैभव मां लक्ष्मी जी का व्रत शुक्रवार को रखना चाहिए। सुबह उठकर नहा-धोकर साफ-सुथरे कपड़े पहनें और दिन भर मां का पूजन करें। हर समय मुंह से यही शब्द निकालें ।

जय लक्ष्मी मां ! जय लक्ष्मी मां !

शाम के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह करके आसन पर बैठें और मां लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र किसी ऊंचे स्थान पर रखकर उसके आगे चावलों की ढेरी लगाएं। एक खुली प्लेट में सोने के जेवर रखें। यदि सोने के जेवर न हो तो चांदी के जेवर रखें। मां लक्ष्मी के चरणों में गुलाब के सुर्ख फूल अर्पण करके धूप के साथ- साथ देसी घी की ज्योति जलाएं।

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