Shri Vaibhav Lakshmi Maa: देखा जाए तो यह पूरा संसार लक्ष्मी जी के चारों ओर नृत्य कर रहा है। हर छोटा-बड़ा लक्ष्मी को पाकर धनवान बनने के चक्कर में है। हर प्राणी धनवान बनने के सपने देखता रहता है। ऐसा ही एक प्राणी मांगेराम था। जो छोटा-सा व्यापारी था। थोड़ा बहुत कोई अनाज या तेल खरीद कर स्टाक कर लेता। जब उसका भाव बढ़ जाता तो उसे बेच देता । उससे उसे जो लाभ होता, उसी में अपना जीवन व्यतीत करता।
हर बार तो हर काम में लाभ नहीं होता …एक बार मांगेराम ने कुछ ऐसे सामान को खरीदकर गोदाम में भर लिया जिसके विषय में उसे पूर्ण यह विश्वास था कि इस साल के बजट में उन चीज़ों के दाम अवश्य बढ़ेंगे तो वह इन्हें बेचकर खूब धन कमा लेगा। फिर वह सेठ मांगे राम बन जाएगा। परन्तु उसने जो सोचा था, सारे काम उसके विपरीत हो गए। उन चीज़ों का भाव बढ़ने की बजाय कम हो गया जिसके कारण उसे इतना घाटा हो गया कि मांगे राम का सारा धन चला गया ऐसे समय में इंसान को क्या सूझता, उसके जीवन में न हटने वाला अन्धेरा छा गया। वह उदास और निराश घर में पड़ा रहने लगा।
सारा धंधा चौपट हो गया। चिंता के मारे मांगे राम अंदर ही अंदर सूखने लगा। उसकी पत्नी जब अपने पति की यह हालत देखती तो उसका दिल भी टूटने लगता। एक ओर घर में खाने को कुछ नहीं रहा था तथा कारोबार भी बंद हो गया। तीसरा उसके पति ने खटिया पकड़ ली। ऐसे में वह क्या करे? कहाँ जाए? इन्हीं चिन्ताओं में डूबी रामदेवी रात-रात भर सो न सकती। नींद आती ही कहाँ थी।
वह हर रोज़ सुबह उठकर विष्णु भगवान जी के मंदिर जाती। वहां पर मां लक्ष्मी और उनके पति भगवान् विष्णु की जोड़ी के आगे दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करती है लक्ष्मी नाथ! हे भगवान् विष्णु! मुझ पर भी कृपा करो। हमारा उजड़ रहा घर आप ही बचा सकते हो। मेरे पति ने खाना-पीना भी छोड़ दिया है। इस हालत में क्या वे जीवित रहेंगे। प्रभु आप ही लक्ष्मी जी से कहो कि हम दुःखियों पर थोड़ी कृपा कर दें। नहीं तो हम दोनों पति-पत्नी मर जाएंगे।
आपका भक्त दुःखी होकर मरे तो क्या आप सहन कर लेंगे प्रभु? आप ही बताओ यदि आपको दुःख होगा तो लक्ष्मी जी उसे सहन कर लेंगी?
प्रभु …… यदि मेरे पति की मृत्यु हो गई तो मैं भी उसी समय अपनी जान दे दूंगी…… इस हत्या का कारण लक्ष्मी जी होंगी…. जो हम से रूठ गई हैं। यह कहते हुए राम देवी भगवान् विष्णु और लक्ष्मी जी के चरणों में सिर रखकर फूट-फूट कर रोने लगीं। उसी समय मां लक्ष्मी की आवाज़ आई !
राम देवी, जाओ! अपने घर जाकर मेरे ग्यारह व्रत रखो। परन्तु यह ध्यान रखना कि यह व्रत संपूर्ण विधिपूर्वक रखे जाएं। फिर तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाएगी। राम देवी मां लक्ष्मी की जय-जयकार करती हुई मंदिर से बाहर निकली। उसने अपने पति को जाकर सारी कहानी सुनाई। अपनी पत्नी की बात पूर्ण विश्वास करके उसने अपना नया जीवन आरंभ करने की योजना बना ली। अब तो उसे मां लक्ष्मी का आर्शीवाद मिल गया था। उसने जैसे-तैसे कुछ मित्रों से मिलकर उनकी सहायता से नया माल सस्ते रेटों पर खरीद लिया।
उधर उसकी पत्नीराम देवी हर शुक्रवार को मां लक्ष्मी जी के व्रत रखकर शाम को उनकी कथा करके प्रसाद बांटती। ग्यारहवें व्रत पर उसने ग्यारह कुंवारी कन्याओं को खाना खिलाकर सच्चे मन से अपने पति के साथ मिलकर मां लक्ष्मी की उपासना की। साथ ही इक्यावन पुस्तकें Shri Vaibhav Lakshmi Maa व्रत की मां लक्ष्मी के भक्तों को बांटी।
दूसरे ही दिन जैसे मांगे राम अपनी दुकान पर गया तो उसका सारा माल दोगुने रेटों पर बिक गया। जिससे मांगे राम को बहुत लाभ हुआ। उसी लाभ से उसने कई प्रकार की चीजें खरीद कर अंदर भर लिया। देखते ही देखते उसे हर काम में लाभ होने लगा। उसके सारे पुराने घाटे मुनाफे में बदल गए। कुछ ही दिनों में कंगला मांगेराम सेठ मांगे राम बन गया। उसने अपने घर में ही मां लक्षमी जी का मंदिर बना लिया। सुबह-शाम दोनों पति-पत्नी उस मंदिर में बैठकर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की उपासना करते। राम देवी मां लक्ष्मी के इक्कीस व्रत हर वर्ष रखने लगी।
Shri Vaibhav Lakshmi Maa के व्रत के चमत्कार से सेठ मांगेराम को नई उम्मीद और नई समृद्धि मिली। उनकी पत्नी रामदेवी ने भी व्रत के बल पर नए संदर्भों में अपने पति का साथ दिया और उन्हें मां लक्ष्मी की उपासना में मदद की।
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