Maa Vaibhav Lakshmi Vrat: सेठ जय लाल की शादी को दस वर्ष बीत गए थे। इन दस बहुत वर्षों में एक छोटी-सी दुकान पर अपना धंदा करते-करते बड़ी कोठी तक पहुंच गए थे। एक साधारण दुकानदार से बड़े व्यापारी बन गए। धन कमाने की भूख तो हर प्राणी को ही होती है। इसलिए जय लाल के विषय में यह बात कहना बेकार है। धन कमाने की लालसा उन्हें बचपन से ही थी।
जय से वे जय लाल बने फिर सेठ जल लाल हो गये। यह सब चमत्कार लक्षमी जी का ही था कि किसी को तो रामू…. से रामचंद्र…… और जब अति कृपा होती है सेठ राम चंद्र जी बना देती है, धन्य हो मां लक्ष्मी आप तो सदा से धन्य हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि इस माया के तीन नाम : परशु, परशा, परशराम ।
सेठ जय लाल जी का जीवन कुछ ऐसा ही था। धन कमाने के लिए वे इतने अंधे हो गए थे कि उन्हें अपनी पत्नी की सूनी गोद का भी ख्याल न आया क्योंकि उनके सामने तो एक मंजिल थी धन कमाना……. मां लक्ष्मी को तिजोरियों में बंद रखना। पत्नी को सोने से लाद तो दिया लेकिन उसका हृदय…..उसमें हृदय के अंदर जो ममता सिसकियां भर रही थीं। उस पीड़ा को जानने का प्रयास कभी न किया।
नारी के अंदर भी तो एक नारी होती है। कामुक और भावुक पुरूष उसे समझने का प्रयास नहीं करते। कृष्णा देवी के हृदय में एक ऐसी ही आशा पिछले दस वर्षों से सिसकियां भर रही थी। वैसे तो उनके घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी, धन-दौलत, सोना-चांदी, कारें, कोठी सब कुछ ही था। मगर इन सब चीज़ों के होते हुए उसका मन बुझा-बुझा सा रहता था। धीरे-धीरे यह उदासी उसे रोग की ओर ले जाने लगी।
जय लाल जी ने जब अपनी पत्नी की यह हालत देखी तो उसका मन टूटने लगा। जीवन में उन्हें पहली बार अहसास होने लगा कि उन्होंने सब कुछ पाकर भी सब कुछ खो दिया है, कृष्णा देवी की आंखों से बह रहे आंसू देख कर उनका मन भी डूबने लगा। उन्होंने अपनी पत्नी को छाती से लगाकर कहा-
प्रिय, न रो……. न रो तुम्हारे आंसू मुझसे नहीं देखे जाते। फिर अब तुम्हारे पास किस चीज़ की कमी है। जो इस तरह से रो रही हो……… प्राण नाथ! हमारे पास सब कुछ होते हुए भी हमारी हालत किसी भिखारी से भी बुरी है। आप इस धन कमाने को ही जीवन समझ बैठे हैं। मगर कभी भूलकर यह भी सोचा है कि धन आप किसके लिए इकट्ठा कर रहे हैं ?
हमारी मौत के पश्चात् इसका वारिस कौन होगा। यह धन तो सेठ जय लाल का नाम नहीं पुकारेगा।
कोई यह नहीं कहेगा सौ तोले सोना या लाखों करोड़ों रुपये सुपुत्र श्री जय लाल । यह तो हमारी संतान से ही लिया जाएगा। राम लाल सुपुत्र सेठ जय लाल…….यदि हमें संतान नहीं, तो आपकी यह संपत्ति मिट्टी है मिट्टी। यह जिंदगी नहीं…….जीने का साधन है …….
फिर मैं एक नारी हूं। मेरी ममता को इस धन से बहलाया नहीं जा सकता। मुझे तो संतान की ज़रूरत है……संतान की। संतान नहीं तो यह सब बेकार है। यह कहते हुए कृष्णा बच्चों की भांति फूट-फूट रोने लगी।
जय लाल को महसूस हुआ जैसे वह ठोकर खाकर गिर पड़ा। उसके मन की आंखें पहली बार खुली थीं। वास्तव में उसने अपनी जीवन की सबसे बड़ी भूल यही की थी कि संसार भर के बारे में सोचता रहा। मगर अपनी पत्नी के बारे में कभी न सोचा। आज पहली बार उसने अपनी पत्नी के हृदय की गहराइयों में झांक कर देखा था।
संतान के बारे में उसने पहले भी बड़े से बड़े डाक्टरों से दवाइयां ली थीं। हर प्रकार के चैकअप भी करवाए थे। परन्तु हर डाक्टर ने यही कहा, आप दोनों में कोई कमी नहीं।
बात डाक्टरों के पास ही खत्म हो गई। इससे आगे उन्होंने कभी नहीं सोचा….. किन्तु आज उनकी पत्नी ने उनकी आंखे खोल दीं हैं…….. परन्तु इस दुःख का उपाय क्या है? यही बात उनकी समझ में नहीं आ रही थी।
“कृष्णा!”
“जी !”
तुम क्या समझती हो कि मुझे संतान की ज़रूरत नहीं। मैंने अच्छे से अच्छे डाक्टरों से सलाह ली। दवाइयां लीं, परन्तु फिर भी हम संतान नहीं पा सके तो क्या करें?
यदि केवल डाक्टरों से ही संतान की आशा लगाए बैठे रहे तो कुछ नहीं होगा। उन्हें तो आपसे धन मिल रहा है। वे लंबे-लंबे परचे दवाइयों के लिखकर पकड़ा देते हैं। क्या हुआ उनसे?
कुछ नहीं……कुछ नहीं……|
“फिर क्या करूं?”
अभी यह शब्द जय लाल के मुंह में ही थे कि नौकरानी ने आकर बताया, बाहर पंडित जी आए हैं ।
जी, वे कह रहे थे, मैं मथुरा, वृंदावन से आया हूं। इतने वर्षों के पश्चात् उनके पुरोहित जी पधारे हैं, यह सुनकर उन्हें बड़ी खुशी हुई। दोनों पति-पत्नी उठकर उनके स्वागत के लिए गए। चरण छू कर उन्हें उच्च स्थान पर बैठाया।
पंडित जी आप और इतने वर्षों के पश्चात् !
इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं, हम ब्राह्मण सदा संकट के समय ही आते हैं। हम लोभी ब्राह्मण नहीं। हम तो मन के मौजी हैं। हमारे हृदय के तार प्रभु की वीणा पर थिड़कते हैं। बोलो बच्चों !
जी…. जी……मगर आपको यह कैसे पता चला।
हरि ओम….. हरि ओम……. जय शिव शंकर भोले नाथ…… हे भगवान विष्णु लक्ष्मी नारायण….
अब यदि मैं आपको यह बता दूं कि आप संतान न होने के दुःख से पीड़ित हैं तो……..
धन्य हैं महाराज! आप वास्तव में ही आप हमारे वंश के पुरोहित हैं। हे ब्रह्मस्वरूप ! क्या आप हमारे इस कष्ट को दूर कर सकते हैं ?
करने वाले तो स्वयं लक्ष्मी नारायण विष्णु हैं। उनके आशीर्वाद से आप Maa Vaibhav Lakshmi जी के इक्यावन व्रत (VRAT) रखने का दृढ़ संकल्प ले लें। यह व्रत आप रखेंगी। जिस दिन अंतिम व्रत संपूर्ण होने लगे उसी दिन मां लक्ष्मी का यज्ञ कर इक्यावन कुंवारी कन्याओं को भोजन करवा दें और साथ ही इक्यावन पुस्तकें श्री वैभव लक्ष्मी व्रत की मां के भक्तों को बांट दें। यदि इक्यावन कन्याओं को भोजन कराना संभव न हो तो ग्यारह कन्याओं को भोजन करायें। प्रभु आपकी इच्छा पूरी करेंगे और व्रत की पूरी विधि समझाकर पंडित जी प्रस्थान कर गए। सेठ जय लाल व उनकी धर्मपत्नी कृष्णा ने Maa Vaibhav Lakshmi Vrat उसी शुक्रवार से करना प्रारंभ कर दिया। इस व्रत के पूर्ण होने के नौ मास पश्चात् मां वैभव लक्षमी की कृपा उन पर हुई। कृष्णा देवी एक पुत्र की मां बनी तो जय लाल पिता बन गए। जय मां लक्ष्मी!
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