क्या है कावेरी जल विवाद जिसकी वजह से कर्नाटक और तमिलनाडु हैं आमने-सामने, दशकों पुराने इस विवाद को समझें बेहद आसान भाषा में

कावेरी नदी जल विवाद : भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के जल के बंटवारे को लेकर चल रहा 150 साल पुराना विवाद एक बार फिर चर्चाओं में है। इस बार यह विवाद कर्नाटक में नदी के जलग्रहण क्षेत्र में कम वर्षा होने के कारण उत्पन्न हुआ है। यह विवाद कर्नाटक सरकार द्वारा तमिलनाडु को 15 अक्टूबर तक प्रतिदिन 5000 क्यूसेक (Cusec) पानी छोड़ने के कर्नाटक सरकार के फैसले के कारण उत्पन्न हुआ है। (Cusec पानी की मात्रा मापने की एक इकाई है। इसका मतलब एक सेकंड में छोड़ा गया क्यूबिक सैंटीमीटर पानी होता है)

कर्नाटक सरकार के इस फैसले के विरोध में कई कन्नड़ समर्थक संगठनों, किसान समूहों, श्रमिक संघों ने विपक्षी दल भाजपा और जनता दल सेक्युलर के समर्थन से 26 सितंबर को बेंगलुरु बंद का आवाहन किया था।

प्रदर्शनकारियों का तर्क था कि कर्नाटक में कावेरी नदी के बेसिन के जलाशयों में जलस्तर बहुत कम है। इसके बावजूद तमिलनाडु में पानी छोड़ा जा रहा है। जबकि तमिलनाडु में पश्चिम मानसून करीब है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि कावेरी नदी बेंगलुरु शहर के लिए पीने के पानी और राज्य के मांड्या क्षेत्र में कृषि भूमि की सिंचाई का मुख्य स्रोत है। यह विवाद कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों राज्यों के किसानों एवं अन्य संघों की तरफ़ से होता है।

समझें ताजा विवाद की जड़

सन 2018 में कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद दोबारा यह विवाद वर्षा संकट के कारण उत्पन्न हुआ है।

  • 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत कर्नाटक को हर साल जून और सितंबर के बीच तमिलनाडु को 123.14 TMC (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) छोड़ना है। सामान्य मानसून सीजन में कर्नाटक द्धारा तमिलनाडु को अगस्त में कुल 45.95 TMC और सितंबर में 36.76 TMC पानी छोड़ना होता है। लेकिन इस साल कर्नाटक ने कम बारिश की वजह से संकट की स्थिति का हवाला देते हुए 23 सितंबर तक मात्र 40 TMC पानी छोड़ा था।
  • इससे पहले अगस्त में तमिलनाडु सरकार ने आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए CWRC (कावेरी वॉटर रेगुलेशन कमेटी) से संपर्क किया था। CWRC, CWMA (कावेरी वॉटर मैनेजमेंट अथॉरिटी) के तहत काम करने वाली संस्था है। CWRC ने पाया कि कर्नाटक में कावेरी बेसिन में अगस्त की शुरुआत तक वर्षा सामान्य से 26 प्रतिशत कम थी। समिति ने पाया कि इसी वजह से कर्नाटक ने 1 जून से 28 अगस्त तक केवल 30.252 TMC पानी छोड़ा था जो सामान्य वर्ष में निर्धारित 80.451 TMC से कम था।
  • इसी के बाद CWRC की सिफारिश के आधार पर CWMA ने 12 अगस्त को 15 दिनों के लिए 12000 क्यूसेक प्रतिदिन की दर से लगभग 13 TMC पानी छोड़ने का आदेश दिया। जबकि तमिलनाडु प्रतिदिन 25000 क्यूसेक की मांग कर रहा था। इसके बाद CWMA ने मानसून की समीक्षा के बाद पानी छोड़ने की यह दर घटाकर 5000 क्यूसेक प्रतिदिन कर दी गई। जबकि तमिलनाडु 12000 प्रतिदिन क्यूसेक की मांग कर रहा था।
  • अंततः तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों ने CWMA के आदेशों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। लेकिन 21 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने CWMA के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 26 सितंबर तक 5000 क्यूसेक पानी छोड़ने के CWMA के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद कर्नाटक सरकार ने कहा कि वह 26 सितंबर तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेगी। इसके बाद आगे की स्थिति तय होगी। इसी वजह से कई समूह, किसान संघों और विपक्षी दलों द्वारा बेंगलुरु बंद का आवाहन किया गया था।

कावेरी जल विवाद का इतिहास

कावेरी नदी का उद्गम स्थल कर्नाटक राज्य में है। कर्नाटक से निकलने के बाद यह केरल से आने वाली सहायक नदियों के साथ मिलकर तमिलनाडु, पांडिचेरी से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसी वजह से यह विवाद तीन राज्य और एक केंद्रशासित प्रदेश के बीच में है। लेकिन मुख्यतः यह विवाद तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य के बीच है।

तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल विवाद लगभग 150 साल पुराना है। वर्ष 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी तथा मैसूर के बीच हुऐ दो समझौते इस विवाद का मुख्य कारण है। इस समझौते में उल्लेख है कि किसी भी परियोजना जैसे कावेरी नदी तथा जलाशय निर्माण के लिए ऊपरी तटवर्ती राज्य को निचले तटवर्ती राज्य की अनुमति लेना अनिवार्य है।

तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल विवाद 1974 में पहली बार शुरू हुआ। क्योंकि कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति के बिना पानी मोड़ना शुरू कर दिया था। कई बरसों के विवाद के बाद वर्ष 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) की स्थापना की गई। कई वर्षों तक यह विवाद चलने के बाद आखिरकार 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी नदी को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करते हुए CWDT द्वारा निर्धारित जल बटवारे की व्यवस्था को बरकरार रखा।

इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा जून 2018 में कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) और कावेरी जल विनिमय समिति (CWDT) का गठन करते हुए कावेरी जल प्रबंधन योजना को अधिसूचित किया।

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