महाराणा प्रताप राजस्थान के महान राजा थे जिन्होंने मुगल साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया था। इतिहासकारों ने अकबर को शूरवीर साबित करने के लिए महाराणा प्रताप को अपमानित किया था जिसका एक उदाहरण यह लिखा गया है कि उन्हें इतने बुरे दिन देखने पड़े थे कि वे घास के रोटियाँ खाते थे। महाराणा प्रताप को एक महान योद्धा के रूप में याद किया जाता है
श्री महाराणा प्रताप के जीवन रक्षा के लिए वन्य वनस्पति का उपयोग
महाराणा प्रताप ने अपने संघर्ष के दिनों में जंगलों में जीवन व्यतीत करने के लिए वन्य वनस्पतियों का सहारा लिया था इतिहासकारों ने उनके बारे में असत्य तथ्य फैलाए थे कि वे घास के रोटियां खाते थे, जबकि वास्तविकता यह है कि उन्होंने वन्य वनस्पतियों के उत्पादों का सेवन किया था। इन वनस्पतियों में पोषण से भरपूर तत्व होते थे।
जंगल में रहते हुए महाराणा और उनका परिवार मेवाड़ की मगरियों और घाटियों की उपजाऊ धरा में वन्य वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों से उनके पोषण के लिए लाभ उठाते थे। वे यहाँ उपलब्ध जंगली सब्जियों और जड़ी-बूटियों के रोटी खाते थे। अपमार्ग के बीज से बनी रोटियाँ खाने के बाद उन्हें लंबे समय तक भूख नहीं लगती थी। इसके अलावा, रागी, कुड़ी, हमलाई, कोडोन, कंगनी, चीना, लोईरा और सहजन की खाद्य पदार्थों का भी उपयोग किया जाता था। इन्हें कई सालों तक संग्रहित करने पर कीटों का उत्पादन नहीं होता था।
यह सत्य है कि दक्षिणी राजस्थान में परंपरागत खाद्यान्न से विमुख होने से कुपोषण की समस्या होती है। आज भी इस क्षेत्र में बहुत से लोग परंपरागत खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं और इससे उन्हें पोषण भी मिलता है। लेकिन धीरे-धीरे इस परंपरा को छोड़ दिया जा रहा है। इससे कुछ लोगों को पोषण की समस्या होती है जो इस परंपरा से विमुख होते हैं। आज भी बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों में भी इन वनस्पतियों की अधिकता होती है।
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राजस्थान में खाद्य और कृषि संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाएं
महाराणा प्रताप काल के समय से लेकर आज तक, राजस्थान में खाद्य और कृषि संस्कृति बहुत महत्वपूर्ण रही है। यहां के लोग अपनी परंपरागत खाद्य पदार्थों को बहुत महत्व देते हैं जो उन्हें उनकी स्वस्थ्य देखभाल में मदद करते हैं। इसलिए, इस क्षेत्र मेंखाद्य और कृषि संस्कृति के विकास को बढ़ावा देने के लिए कई सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। राजस्थान सरकार ने किसानों को समर्थन देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि मुख्यमंत्री कृषि उपज ऋण माफी योजना, कृषि उपज मंडी शुल्क माफी योजना, जल स्वावलंबन अभियान, जल महोत्सव, मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना, राजस्थान किसान कल्याण योजना, एवं राजस्थान कृषि पदक योजना। इन योजनाओं के माध्यम से, किसानों को उनकी खेती को सुधारने के लिए विभिन्न विकल्प दिए जा रहे हैं।
वास्तव में, वनस्पतियों के अलावा भी कई परंपरागत खाद्य पदार्थ राजस्थान में उपलब्ध हैं जो लोगों को पोषण प्रदान करते हैं। इनमें गेहूं, जौ, बाजरा, ज्वार, मक्का, उड़द दाल, मूंग दाल, चने की दाल, राजस्थानी लाल मिर्च, करी पत्ते, गुड़, माखन, घी आदि शामिल हैं। इन खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की अधिक मात्रा होती है जो लोगों को उनकी स्वस्थ्य देखभाल में मदद करते हैं। इसके अलावा, राजस्थान के कुछ भागों में खेती के लिए पानी की कमी होती है, इसलिए वहां कृषि तकनीकों में नवाचार करने की जरूरत है ताकि खेती में सफलता हासिल की जा सके।
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