हाईकोर्ट: महिला का ससुराल में आत्महत्या करना, पति या ससुराल वालों को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने वैवाहिक महिला का ससुराल में आत्महत्या करने के एक मामले में महत्वपूर्ण टिप्पड़ी की। हाईकोर्ट ने कहा कि “एक वैवाहिक महिला के उसकेे सुसराल में आत्महत्या करने पर पति एवं ससुराल वालों को आत्महत्या के लिए उकसाने एवं उत्पीड़न का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।” इस मामले में कोर्ट ने आरोपियों को बरी करने के निचली अदालत के फ़ैसले को भी बरकरार रखा।

क्या है मामला?

महिला द्वारा आत्महत्या करने का यह मामला साल 2002 का है। उस समय महिला ने ससुराल में आत्महत्या कर ली थी। मृतक महिला के पिता ने आरोप लगाया था कि ससुराल वालों की तरफ से दहेज की मांग करते हुए उनकी बेटी को प्रताड़ित किया गया था। दहेज की प्रताड़ना से परेशान होकर उसकी बेटी ने आत्महत्या कर ली थी।

अभियोजन पक्ष द्वारा की गई शिकायत के अनुसार महिला का पति एवं ससुराल वाले व्यापार खोलने के लिए 4 लाख रुपए की मांग कर रहे थे। पैसे ना देने की स्थिति में महिला को जान से मारने की धमकी दी थी। इसी स्थिति को देखते हुए शिकायत में कहा गया है कि ट्रायल कोर्ट में आरोपियों को बरी करने का फैसला सही नहीं था। जिसके बाद यह मामला हाई कोर्ट में चल रहा था। अब इस मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी की और आरोपियों को बरी कर दिया है।

क्या कहा हाईकोर्ट ने ?

इस मामले हाईकोर्ट के जज जस्टिस एन एस शेखावत ने कहा कि अपशब्दों का इस्तेमाल करके पत्नी का अपमान करना, पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला नहीं बनता है। जस्टिस शेखावत ने आगे कहा कि “अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी द्वारा किया गया कृत मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने का था। किसी व्यक्ति को IPC की धारा 306 के तहत दोषी ठहराने के लिए अपराध करने की मंशा का सिद्ध होना अनिवार्य है। इसीलिए इस मामले में आरोपियों को अपराध के लिए आरोपी सिद्ध करने का कोई ठोस सबूत नहीं है।”

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हाईकोर्ट ने कहा कि 18 साल के वैवाहिक जीवन में महिला या उसके परिवार वालों की तरफ से कभी भी उत्पीड़न या दहेज की कोई शिकायत नहीं की गई। महिला का अपने ससुराल में आत्महत्या करना यह सिद्ध नहीं करता है कि उसे पति या ससुराल वालों ने आत्महत्या के लिए उकसाया था।

4 साल ट्रायल कोर्ट में केस चलने के बाद इस मामले में आरोपियों को बरी कर दिया था। जिसके बाद यह मामला हाईकोर्ट में पहुंचा। इसी मामले में हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया।

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