केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता (UCC) को लाने की तैयारी में गतिरोध बढ़ा दिया है। सरकार की ओर से गठित 22वें विधि आयोग ने अब समान नागरिक संहिता पर आम जनता और धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों से विचार विमर्श और राय मांगने का कार्य शुरू कर दिया है। यह पहली बार नहीं है कि राय मांगी जा रही है, समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर आयोग ने साल 2018 में भी एक राय पत्र जारी किया था।
क्या होता है समान नागरिक कानून?
समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। यह संहिता शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून को लागू करेगी। इससे यूनियन सिविल कोड का अर्थ बनेगा, जो किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं रखता। समान नागरिक संहिता का उद्देश्य कानूनों का एक समान सेट प्रदान करना है, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।
समान नागरिक संहिता के लागू होने में क्यों हो रही है देरी?
संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लेकर प्रावधान होने के बावजूद, इसके लागू होने में देरी हो रही है। पिछले साल दिसंबर में तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में कहा था कि सरकार समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने के प्रयास में राज्यों को व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार दे रही है। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने शीर्ष कोर्ट में दायर अपने एक हलफनामे में यह भी कहा था कि सरकार का दायित्व है समान नागरिक संहिता को देश के सभी नागरिकों के लिए लागू करना। सरकार ने इसके लिए संविधान के चौथे भाग में मौजूद राज्य के नीति निदेशक तत्वों का ब्यौरा दिया है।
यहां तक कि Uniform Civil Code के मुद्दे पर पहले भी विचार-विमर्श हुआ था। साल 2018 में एक राय पत्र जारी किया गया था जिसमें इस संहिता पर राय मांगी गई थी। इससे सरकार के कार्यक्रम में देरी हुई.
अब यह सवाल उठ रहा है कि इस तालिका को पूरा करने में सरकार को इतना समय क्यों लग रहा है? क्या इसके पीछे कोई वजह है? जबकि Uniform Civil Code को लेकर पहले से ही संविधान में प्रावधान होने के बावजूद यह मुद्दा अभी तक निरस्त नहीं हुआ है। इसके लिए सरकार के पास कई मान्यताओं और प्रतिबद्धताओं का ध्यान रखना होगा। इस प्रक्रिया में लोगों की राय और समाज के विभिन्न धार्मिक संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नई संहिता समाज के सभी वर्गों की समानता और न्याय को सुनिश्चित करे, धार्मिक सम्प्रदायों को संपर्क में लाए, और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करे।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों की राय अनुसार, Uniform Civil Code की आवश्यकता को सुप्रीम कोर्ट और उच्चतम न्यायालयों ने समर्थन दिया है। भाजपा की विचारधारा से जुड़े राम मंदिर और अनुच्छेद 370 की राह में कई कानूनी अड़चनें थीं, मगर समान नागरिक संहिता मामले में ऐसा नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित नीति निर्देशक सिद्धांतों में समान नागरिक संहिता की वकालत की गई है।
समान नागरिक संहिता के लागू होने की आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट और उच्चतम न्यायालयों द्वारा समर्थित
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से लेकर कई राज्यों के हाईकोर्ट ने UCC के लागू होने की आवश्यकता को बताया है। उत्तराखंड सरकार के खिलाफ दायर याचिका भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। केंद्र सरकार ने भी शीर्ष अदालत में इस विषय पर अपना समर्थन जाहिर किया है।
कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार जारी है और यह रिपोर्ट उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित कमेटी के अध्यक्षता में जस्टिस रंजना देसाई द्वारा पेश की जाएगी। इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार एक मॉडल कानून बनाने की तैयारी में है जिसके तहत Uniform Civil Code को पूरे देश में लागू किया जाएगा। कमेटी ने करीब ढाई लाख सुझाव मांगे थे और इसके बाद कमेटी ने सभी हितधारकों के संवाद के बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए बैठकें कर रही है। उम्मीद है कि कमेटी जल्द ही अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।
गुजरात और मध्यप्रदेश में UCC के लागू होने की प्रतीक्षा: जस्टिस रंजना कमेटी की रिपोर्ट और भाजपा की रणनीति
इसी तरह, गुजरात और मध्यप्रदेश सरकारों को भी समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए रिपोर्ट की प्रतीक्षा है। इन राज्यों की सरकारों को भी जस्टिस रंजना कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है। गुजरात कैबिनेट ने समान नागरिक संहिता कानून पर मुहर लगा दी है।
भाजपा इस मामले में जनसंख्या नियंत्रण कानून की तर्ज पर कदम उठा सकती है और पहले पार्टी शासित राज्यों ने जैसे कि असम और उत्तर प्रदेश ने कदम उठाए थे, वैसे ही कई और राज्यों को भी इसमें दिलचस्पी है। भाजपा इस रणनीति के तहत कुछ राज्यों में समान नागरिक संहिता को लागू कर सकती है और इसके बाद इसे पूरे देश में लागू करेगी।
केंद्र सरकार और विधि आयोग की सहमति से UCC को लागू करने की तैयारी में तेजी
केंद्र सरकार ने फिर से Uniform Civil Code को लाने की तैयारी तेज कर दी है और विधि आयोग ने इस मामले पर नए सिरे से परामर्श मांगने की प्रक्रिया शुरू की है। आयोग ने सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों से इस मुद्दे पर राय मांगी है|
विधि आयोग के नए अध्यक्ष जस्टिस रितु राय अवस्थी के नेतृत्व में कर्नाटक हाई कोर्ट के विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर फिर से राय मांगने का निर्णय लिया है। पहले जारी की गई राय काफी समय पहले हुई थी और वह पुरानी हो चुकी है, इसलिए विधि आयोग ने फिर से लोगों की राय लेने का फैसला किया है।
विधि आयोग के सार्वजनिक नोटिस के अनुसार, समान नागरिक संहिता पर राय लेने की आवश्यकता
इस बात की जांच करने के लिए, विधि आयोग ने एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया है जिसमें कहा गया है कि 21वें विधि आयोग ने 7 अक्टूबर 2016 को समान नागरिक संहिता पर लोगों और हितधारकों से राय मांगी थी। इसके बाद, 19 मार्च 2018 और 27 मार्च 2018 को भी राय मांगी गई। इसके बाद, 31 अगस्त 2018 को विधि आयोग ने परिवार कानून में सुधार के लिए सिफारिश की थी। इसलिए, विधि आयोग को लगा कि इस विषय पर दोबारा से लोगों की राय लेने की आवश्यकता है, क्योंकि पिछली राय के बाद से काफी समय बीत चुका है। यह नया फैसला इस मुद्दे की गंभीरता और कोर्ट के आदेशों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
सभी नवीनतम समाचार, दुनिया समाचार, क्रिकेट समाचार, बॉलीवुड समाचार, पढ़ें,
राजनीति समाचार और मनोरंजन समाचार यहाँ। हमे फेसबुक, गूगल न्यूज़ तथा ट्विटर पर फॉलो करें।