आज ही के दिन 2 जून को तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग करके नए राज्य के रुप में गठन किया था, जानें तेलंगाना के बारे में।

तेलंगाना राज्य भारत के दक्षिणी भाग में स्थित है और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्रा, छत्तीसगढ़, ओडिशा और कर्नाटक राज्यों से घिरा हुआ है। यह 2 जून 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर एक अलग राज्य बन गया। तेलंगाना राज्य का विभाजन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत आंध्रप्रदेश को उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों में विभाजित करके तेलंगाना राज्य का उदय हुआ ।

1 जुलाई, 2013 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने तेलंगाना को एक अलग राज्य के रूप में गठन के लिए प्रस्ताव पारित किया। अलग अलग चरणों से गुजरते हुए आखिरकार फ़रवरी 2014 में आंध्रप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 बिल पारित हो गया। 1 मार्च 2014 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अंततः 2 जून 2014 को देश के 29वे राज्य के रुप में तेलंगाना का गठन हुआ।

तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद बनाया गया, जो कि यहां का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण शहर है। यह एक विकासशील शहर है और वाणिज्यिक, वित्तीय, टेक्नोलॉजी, फार्मास्यूटिकल और संगठनात्मक क्षेत्र में महत्वपूर्ण रूप से योगदान देता है।

राज्य में कई महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल में चारमीनार, गोलकुंडा किला, रामोजी फिल्म सिटी, सांगी गणेश मंदिर, वारंगल किला, काकतीया काली मंदिर, भद्राचलम मंदिर, और एत्मादुल्लाह शाही दरवाजे शामिल हैं।

आइए आपको कुछ मुख्य कारणों के बारे में बताता हूँ, जिनके कारण तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग किया गया था।

ऐतिहासिक परंपरा और सांस्कृतिक विभिन्नता:

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश का विभाजन भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण घटना था। इसके पीछे भाषाई, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक विभिन्नताएं थीं। तेलंगाना के लोगों ने दशकों से अपनी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान पर ध्यान दिया था। तेलंगाना भाषा तेलुगु में बोली जाती है, जबकि आंध्र प्रदेश में तेलुगु भाषा के साथ-साथ तमिल, कन्नड़, और उर्दू भी बोले जाते हैं। इसके अलावा, इस राज्य के लोगों की रहन-सहन, वेश-भूषा, और आचार-व्यवहार में भी आंध्र प्रदेश से थोड़ा भिन्नता थी। विभाजन के पहले, इस क्षेत्र को हैदराबाद निजी रियासत के रूप में जाना जाता था, जबकि आंध्र प्रदेश उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों को सम्मिलित करके गठित हुआ था। इससे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच भाषा, संस्कृति, और ऐतिहासिक परंपराओं में अंतर था।

आर्थिक और वित्तीय मुद्दे:

तेलंगाना क्षेत्र को विकास की कमी और आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। राज्य में कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में बाढ़, सूखा, और आर्थिक अस्थिरता के कारण विकास धीमा था। यहां के किसानों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा की कमी महसूस होती थी। इसके साथ ही, तेलंगाना के भूमि-सम्पत्ति, इंडस्ट्रीज़, और आर्थिक संरचना में भी असंतुलन था।

नौकरियां और आर्थिक विकास:

राज्य में उद्योग, उद्यमिता, और सेवा क्षेत्रों का विकास हो रहा था, जो स्थानीय आर्थिक विकास के अवसर प्रदान कर रहे थे। तेलंगाना के विकास के संकेत के रूप में आंध्र प्रदेश के उद्योगों का इस क्षेत्र में स्थानांतरण हो रहा था। इससे इस क्षेत्र में नौकरी, रोजगार, और आर्थिक सुरक्षा के अधिक मौके मिले हैं।

राजनीतिक आंदोलन:

तेलंगाना क्षेत्र के लोगों ने दशकों तक अपनी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक मुद्दों के लिए संघर्ष किया। आंदोलन उठा, जिसमें लोग तेलंगाना को अलग राज्य के रूप में मान्यता देने की मांग कर रहे थे। यह आंदोलन राजनीतिक प्रचलन, गतिरोध, और आपसी सहमति की कमी के कारण हुआ।

तेलंगाना क्षेत्र के लोगों की प्रशासनिक और राजनीतिक मांगों को लेकर बारंबार विवाद उठते रहे। उन्हें महसूस हो रहा था कि तेलंगाना के हितों की पूरी तरह से आंध्र प्रदेश में संवेदनशीलता नहीं हो रही थी और उनकी आवाज़ को नजरअंदाज़ किया जा रहा था।

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इन सभी कारणों के परिणामस्वरूप, तेलंगाना राज्य 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग हुआ। ऐसा माना जा रहा है कि तेलांगना के गठन के बाद स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है और लोगों को नौकरी, रोजगार, और आर्थिक सुरक्षा के अधिक मौके मिले हैं।

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