नरेंद्र मोदी के झंडा फहराने के बयान पर मल्लिकार्जुन खर्गे की करारी प्रतिक्रिया: क्या होगा अगले साल?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य ने लालकिले पर अगली बार तिरंगा फहराने के संबंध में राजनीतिक वाद को फिर से उत्तेजित कर दिया है। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खर्गे ने इस बयान का कटाक्ष करते हुए कहा कि अगले साल मोदी खुद अपने घर पर ही झंडा फहराएंगे। आज भी वे अहंकार दिखा रहे हैं, तो वे देश को कैसे बनाएंगे।

वास्तव में, प्रधानमंत्री ने लोगों से आशीर्वाद मांगा और कहा, ‘जब देश 2047 में स्वतंत्रता के 100 वर्ष मनाएगा, तो हमारे देश के तिरंगे को विश्व में विकसित देश की पहचान के साथ लहराया जाना चाहिए। इसके लिए, उन्होंने आगामी 5 वर्षों को महत्वपूर्ण बताया और दावा किया कि 2024 में वह ही फिर से लाल किले पर तिरंगा फहराएंगे।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत परिवारजनों के साथ की, लेकिन उन्होंने उसे कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के परिवारवाद से जोड़कर समाप्त किया।

लालू यादव का खर्गे के बयान पर प्रतिक्रिया: ‘मोदी अगली बार झंडा नहीं फहराएंगे

दूसरी ओर, आरजेडी महासचिव और पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने खर्गे के बयान की पुनरावृत्ति की। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अगली बार झंडा नहीं फहराएंगे। यह अंतिम बार है। अगली बार हम आ रहे हैं।

बीमारी के चलते मल्लिकार्जुन खर्गे ने लाल किले के कार्यक्रम में शामिल नहीं होने का दिया कारण

मल्लिकार्जुन खर्गे ने दिल्ली के कांग्रेस कार्यालय में झंडा फहराया। उन्होंने अपनी बीमारी के कारण लाल किले के कार्यक्रम में शामिल नहीं होने का कारण दिया। खर्गे ने कहा कि मेरी आंखों में कुछ समस्या है। दूसरा, प्रोटोकॉल के अनुसार, मुझे सुबह 9:20 बजे अपने घर में झंडा फहराना था।

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खर्गे ने कहा कि इसके बाद मुझे कांग्रेस कार्यालय में आकर भी झंडा फहराना था। जिसके बाद मैं लाल किले नहीं जा सका। वहां सुरक्षा कड़ी है, इसलिए प्रधानमंत्री के जाने से पहले किसी को वहां जाने की अनुमति नहीं है। इसलिए सुरक्षा और समय की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए, मैंने वहां न जाना बेहतर माना।

विजय और पराजय लोगों के हाथ में, अहंकार नहीं: मल्लिकार्जुन खर्गे

खड़गे ने कहा कि हर व्यक्ति कहता है कि हम अगले साल जीतकर वापस आएंगे, लेकिन हार और जीत लोगों के हाथ में होती है। 2023 में कहना कि हम 2024 में वापस आएंगे, यह अहंकार है। अगर वे स्वतंत्रता दिवस पर भी विपक्ष के बारे में ऐसे ही बयान देते हैं, तो देश को कैसे बनाएंगे।

खर्गे ने महान स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए उनके योगदान का संदर्भ दिया

मल्लिकार्जुन खर्गे ने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, मौलाना आजाद, राजेंद्र प्रसाद, सरोजिनी नायडू और डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि दी और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका का संदर्भ दिया।

खर्गे ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अन्य कांग्रेसी प्रधानमंत्री जैसे इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के योगदान का स्मरण किया। उन्होंने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी के नाम का भी जिक्र किया ।

उन्होंने कहा कि हर प्रधानमंत्री ने देश के विकास के लिए काम किया है। आज कुछ लोग कहते हैं कि देश ने कुछ सालों में ही विकास देखा है। अटल बिहारी वाजपेयी सहित हर प्रधानमंत्री ने देश के बारे में सोचा और विकास के लिए आवश्यक कदम उठाए।

सरकार बस विपक्ष को गिराने के काम में लगी है

खर्गे ने दुःख के साथ कहा कि आज मैं यह कहता हूं कि लोकतंत्र, संविधान और स्वायत्त संस्थान गंभीर खतरे में हैं। विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए विभिन्न तरीके का उपयोग किया जा रहा है। सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग द्वारा छानबीन की जा रही है, लेकिन चुनाव आयोग को भी कमजोर किया जा रहा है। विपक्षी सांसदों को परेशान किया जा रहा है, उन्हें सस्पेंड किया जा रहा है, उनके माइक्स को बंद किया जा रहा है, उनके भाषणों को काट दिया जा रहा है।

खर्गे ने महान नेताओं के कार्यों को संवादित करते हुए विकास की बात की

खड़गे ने कहा कि नेहरू ने IIT, IIM और AIIMS की स्थापना की और परमाणु अनुसंधान की शुरुआत की। इन विकास के संकेतों को वर्तमान सरकार ने नजरअंदाज किया। नेहरू ने कला, संस्कृति और साहित्य को प्रोत्साहित किया। लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की नीतियाँ देश को स्वावलंबी बनाने में मदद की।

खर्गे ने कहा कि महान नेताओं ने पुराने इतिहास को नया इतिहास बनाने के लिए पुराने इतिहास को मिटाने की कोशिश नहीं की। यहां पर पुराने को नये बनाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने पुरानी योजनाओं और बुनियादी ढांचा पर नए नाम दिए।

उन्होंने कहा कि ये नेता सत्ता में होकर नकलीता कर रहे हैं, उनके द्वारा शांति बहाल की गई वो विधियाएं अब उनके नामों को बदल दिए जा रहे हैं। पहले वे ‘अच्छे दिन का नारा देते थे’, अब ‘अमृत काल’ कह रहे हैं – क्या यह नाम बदलकर अपनी असफलता को छिपाने का प्रयास नहीं है?

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