गदर-2 की धमाकेदार कमाई: 250 सिंगल स्क्रीन थिएटरों को राहत, छोटे शहरों में फिर बढ़ी सिनेमा की चमक, कोरोनाकाल में 2000 थिएटरों की स्थिति बदली

गदर-2 की धमाकेदार कमाई: फिल्म ‘गदर-2’ ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाया है। 5 दिनों में फिल्म ने 200 करोड़ से अधिक की कमाई की है। ‘पठान’ और अब ‘गदर-2’, इन दोनों फिल्मों की भारी सफलता ने सिंगल स्क्रीन थिएटर्स को बेहद फायदा पहुंचाया है। ये मास एंटरटेनर फिल्में छोटे शहरों के दर्शकों को सिंगल स्क्रीन थिएटरों में आकर्षित करने में कामयाब रही हैं।

कोरोना के दौरान, लगभग 2000 थिएटर परमानेंट रूप से बंद हो गए थे, या उन्हें गोदाम या मॉल में तब्दील कर दिया गया था। बड़े शहरों में मल्टीप्लेक्स ने थिएटरों की जगह ली है। बॉक्स ऑफिस का 70% हिस्सा इन मल्टीप्लेक्सेस से आता है, लेकिन दक्षिण में माहौल बिल्कुल उलटा है। देश की 50% सिंगल स्क्रीन्स केवल दक्षिण भारत के 4 राज्यों में चल रहे हैं।

ढाई दशक पहले, देशभर में 24 हजार से अधिक सिंगल स्क्रीन थिएटर थे, जिनकी संख्या अब करीब 9 हजार तक आ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले कुछ सालों में फिल्म निर्माण में बहुत बदलाव हुआ है, अब फिल्में सिंगल स्क्रीन थिएटरों या छोटे शहरों के दर्शकों के लिए नहीं बनाई जा रही हैं। लम्बे समय बाद, ‘गदर-2’ एक ऐसी फिल्म है, जिसने छोटे शहरों के लोगों को थिएटरों में आकर्षित किया है।

क्यों हुई सिंगल स्क्रीन थिएटरों की संख्या में कमी?

मल्टीप्लेक्सेस के आगमन के साथ, देश में सिंगल स्क्रीन्स की संख्या कम हो गई है। खराब सामग्री भी इस गिरावट में योगदान किया। यह हालत है कि अब यह संख्या काफी कम हो चुकी है।

व्यापारिक विशेषज्ञ राज बंसल का कहना है, पिछले कई वर्षों से फिल्में सिंगल स्क्रीन के अनुसार रिलीज़ नहीं हो रही थीं। ऐसे में, उनका व्यवसाय कम होता गया और थिएटर बंद होते गए। जो कुछ बचा था, उसे कोविड ने पूरा कर दिया। हमेशा यह देखा गया है कि केवल एक्शन मूवीज ही सिंगल स्क्रीन पर कमाई करती हैं। यहां पर कॉमेडी या विषय सेट फिल्में हार जाती हैं। यहां तक कि ऐसे विषय पर फिल्में लंबे समय से नहीं बन रही थीं।

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में सिंगल स्क्रीन की संख्या 24 हजार से 9 हजार के आस-पास तक आ गई है। इनमें से कुछ थिएटर्स को महलों में बदल दिया गया है, और बाकी केवल खंडहर हो गए हैं। दर्शकों की कमी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है।

बचे हुए सिंगल स्क्रीन थिएटरों में, आय का सबसे बड़ा स्रोत क्षेत्रीय फिल्में थीं | सिंगल स्क्रीन सिनेमा एसोसिएशन के उपाध्यक्ष शिराज खान ने एक साक्षात्कार में बताया कि इस समय लोग अधिक पैसे देकर मल्टीप्लेक्स में जाना पसंद करते हैं। उत्तर प्रदेश जैसी जगहों में, भोजपुरी फिल्में ही इन थिएटर्स को जिंदा रखती हैं।

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में कई सिंगल स्क्रीन थिएटर्स के मालिक दर्शकों की कमी के कारण थिएटर्स को अस्थायी रूप से या पूरी तरह बंद करने का विचार कर रहे हैं, दर्शकों की कमी आय को प्रभावित कर रही थी। उनके पास हॉलीवुड फिल्में दिखाने के लिए 2K प्रोजेक्टर खरीदने के लिए बजट नहीं था। इसके परिणामस्वरूप, थिएटरों को बंद करने के सिवाय कोई विकल्प बचा नहीं।

यदि ‘पठान’ और ‘गदर-2’ जैसी फिल्में हाल ही में रिलीज़ नहीं होती, तो कुल 2 हजार सिंगल स्क्रीन थिएटरों में से 200 से 250 थिएटर बंद होने की कगार पर थे।

सिंगल स्क्रीन पर कैसी फिल्में कमाती हैं अधिक, क्या है उनका राज?

फिनैंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एक्शन जॉनर पर आधारित फिल्में सिंगल स्क्रीन पर अच्छा प्रदर्शन करती हैं। दक्षिण उद्योग इसका जीवंत उदाहरण है। उत्तर भारत की तुलना में वहां एक्शन फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल होती हैं। जबकि इन थिएटर्स में अधिकांश युवा पुरुष होते हैं, मल्टीप्लेक्स में दर्शकों का मुख्य भाग परिवार होता है।

मिराज सिनेचेन के संचालक अमित शर्मा के अनुसार, ‘गदर-2’ ने एक्शन से भरपूर फिल्मों के माध्यम से सिंगल स्क्रीन थिएटरों के साथ-साथ प्रदर्शन क्षेत्र को भी ऑक्सीजन प्रदान की है। जबकि पिछले कुछ सालों में हम केवल कंटेंट ड्राइव्न सिनेमा बना रहे थे। मास्टर्पीस फिल्में खत्म हो गई थीं।

मास्टर्पीस फिल्में ही दर्शकों को घर से बाहर सिनेमा हॉल में आने के लिए प्रेरित करती हैं। अगर वो नहीं आतीं तो दर्शक भी थिएटरों में नहीं आते। ऐसे में, ‘केजीएफ’, ‘केजीएफ-2’, ‘पुष्पा’ और ‘पठान’ जैसी एक्शन फिल्में आईं, तो फिर दर्शक फिर से थिएटरों की ओर मुड़ गए। ‘तू झूठी मैं मक्कर’ और ‘रॉकी रानी की प्रेम कहानी’ जैसी मासिक दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाई गई थीं और रिलीज़ की गई थीं, तो हमें 100 करोड़ क्लब की फिल्में मिल गईं।

वहीं, ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’, ‘एक्शन हीरो’ और ‘बढ़ाई दो’ जैसी कंटेंट वाली फिल्में बड़ी संख्या में नहीं आईं। आने वाले दिनों में भी ‘जवान’, ‘टाइगर-3’, ‘एनिमल’ जैसी एक्शन फिल्मों से बड़ी कमाई होने की संभावना है।

मल्टीप्लेक्स के मुकाबले क्यों आगे बढ़े सिंगल स्क्रीन: गदर-2 की धमाकेदार कमाई

केपीएमजी-फिक्सी की रिपोर्ट के अनुसार, मल्टीप्लेक्सेस में आमतौर पर प्रति स्क्रीन क्षमता सिंगल स्क्रीन थिएटर्स की तुलना में कम होती है। मल्टीप्लेक्सेस की बैठक क्षमता लगभग 300 होती है, जबकि सिंगल स्क्रीन्स की क्षमता 1,600 तक होती है।

भारत में फिल्म स्क्रीनों के दो-तिहाई भाग में 400 सीट से कम हैं। 130 थिएटरों में 1000 सीट से अधिक सीटें हैं, ऐसे थिएटरों में आमतौर पर दक्षिण भारत के लोग शामिल होते हैं।

गदर-2 की धमाकेदार कमाई ने सिंगल स्क्रीन को दिलाया बड़ा फायदा

अमित के अनुसार, केवल मिराज सिनेमा में कल सोमवार को 180 स्क्रीन्स पर एक लाख टिकट बिके। ‘गदर-2’ ने दक्षिण के बैंगलोर, हैदराबाद में 80% occupancy हासिल की। पिछले रविवार, 1 लाख 68 लाख टिकट बिके, जिनमें से 1 लाख ‘गदर-2’ के थे, 35 हजार ‘ओह माय गोड 2’ के और 25 हजार ‘जेलर’ के थे।

थिएटर मालिकों की मुश्किलें: अन्य व्यवसाय के लिए स्पेस का उपयोग नहीं कर सके

मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन के बाद सिंगल स्क्रीन थिएटरों की स्थिति और संख्या में कमी आई है, इसके परिणामस्वरूप बहुत सारे थिएटर बंद हो गए। लॉकडाउन में 2000 से अधिक थिएटर बंद हो गए। थिएटर मालिकों को इतना नुकसान हुआ कि वे थिएटर स्पेस को किसी अन्य व्यवसाय के लिए उपयोग नहीं कर सके।

टियर 2 शहरों के मालिकों को 20-25% की छूट पर बेचने की मजबूरी थी। मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, हैदराबाद जैसे शहरों में सिंगल स्क्रीन थिएटरों को गोदाम और वेयरहाउस में बदल दिया गया। नवंबर 2020 तक, 5 सिंगल स्क्रीन थिएटर यहाँ से हमेशा के लिए बंद हो गए। इनमें से 4 थिएटर गोदाम के रूप में उपयोग हो रहे हैं।

साउथ इंडस्ट्री: स्क्रीनों की अधिक संख्या में आगे

लोगों के मन में सवाल है कि दक्षिण भारतीय फ़िल्म उद्योग कैसे अच्छे प्रदर्शन करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि इस क्षेत्र में स्क्रीनों की संख्या अन्य राज्यों की तुलना में अधिक होती है। आउटरीच और कम्यूनिकेशन के ब्यूरो के डेटा के अनुसार, भारत में 9000 स्क्रीन हैं जिनमें 31.52 लाख सीटें हैं। इनमें से 4 दक्षिण के राज्यों में 4150 स्क्रीनें हैं, जिनमें 18.16 लाख सीटें हैं।

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