Chandrayaan3 की सफल लैंडिंग भारत के इतिहास की सबसे निर्णायक क्षणों में से एक है। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन गया है। इससे भारत ने विश्व को अपने वैज्ञानिकों की क्षमताओं को दिखाया है। तथ्य यह है कि भारत ने यह सफलता अपने दूसरे प्रयास में ही हासिल कर ली, जहां दुनिया के विकसित देशों द्वारा चंद्रमा पर भेजे गए यान में से कई असफल हो गए हों।
पिछले 6 दशकों में दुनिया भर के कई देशों की सरकारी एजेंसियां एवं निजी अंतरिक्ष कंपनियों द्वारा किए गए चांद मिशन में से लगभग 50 प्रतिशत ही सफल रहें हैं। चंद्रयान 3 की सफलता से पहले 1976 के बाद चीन और भारत के अलावा बाकी सभी देश अपने चांद मिशन में फेल हुए हैं।
लेकिन दुनिया में कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसने ISRO की तरह चार साल पहले असफल हुए चंद्रयान 2 की असफलता पर लचीलापन, पारदर्शिता और प्रतिबद्धता दिखाई हो। ISRO ने चंद्रयान-2 की असफलता के बाद लगभग 4 वर्षों के भीतर उभरने और मजबूती से वापसी करने का जज्बा भी दिखाया है। इसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चंद्रयान 3 की सफलता के बाद किया।
Chandrayaan3 की लैंडिंग के दौरान प्रधानमंत्री मोदी भी साउथ अफ्रीका से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़े हुए थे। चंद्रयान की सफल लैंडिंग के बाद पीएम मोदी ने कहा कि “यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि हार के सबक से जीत कैसे हासिल की जाती है। यह एक उदाहरण स्थापित करता है। मुझे विश्वास है कि दुनिया के सभी देश जिसमें वैश्विक दक्षिण के देश भी शामिल है, ऐसी उपलब्धि हासिल करने में सक्षम है। हम सभी चंद्रमा और उससे आगे की अकांक्षा करते हैं। अब चंदा मामा दूर के नहीं बस एक टूर के हैं।
Chandrayaan3 चांद की सतह पर छोड़ेगा तिरंगा और ISRO के प्रिंट
Chandrayaan3 की लैंडिंग के बाद अगले कुछ घंटों में सभी टेस्ट करने के बाद लेंडर साथ गया प्रज्ञान रोवर ने रैंप के माध्यम से लैंडर से बाहर आकर चांद की सतह पर उतरेगा।
6 पहियों वाला वहां प्रज्ञान रोवर जिसके पहियों पर भारतीय ध्वज तिरंगा एवं ISRO का लोगो प्रिंट किया गया है। जैसे ही यह चांद की सतह पर चलेगा तो चांद की मिट्टी पर “तिरंगा” एवं ISRO का निशान छप जाएगा। रोवर के पहियों के द्वारा चांद की मिट्टी पर छपा यह तिरंगा एवं ISRO का निशान सैकड़ो सालों तक चांद की सतह पर ऐसे ही बना रहेगा। जैसे चंद्रमा पर गए पहले इंसान नील आर्मस्ट्रांग के जूतों के निशान छपे हुए हैं।
चंद्रमा की सतह पर छपे नील आर्मस्ट्रांग के जूते के निशान दुनिया भर में मिसाल बन गए थे। अब इसी तरह भारतीय तिरंगा एवं ISRO का निशान चांद पर अमिट छाप छोड़ने के बाद हमारी पीढ़ियों को विज्ञान के लिए प्रेरित करता रहेगा।
भारत NASA के Artemis Agreement के तहत मिलकर करेगा काम।
आपको बता दें कि जून में अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA के साथ हुए समझौते के बाद भारत NASA के Artemis मिशन का हिस्सा बन चुका है। Chandryaan3 द्वारा चंद्रमा दक्षिणी ध्रुव पर किए जानें वाले का फ़ायदा NASA को भी होगा क्योंकि जल्द ही NASA, Artemis मिशन के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपने अंतरिक्ष यात्री को उतारने वाला है। Artemis Agreement होने के बाद Chandrayaan3 द्धारा चांद पर किए जाने वाले अध्ययनों को पूरी दुनिया के द्वारा बहुत ही गहराई से अध्ययन किया जायेगा।
Chandrayaan3 का 14 दिनों का है सफर।
Chandrayaan3 चंद्रमा पर 14 दिनों तक काम करेगा। क्योंकि 14 दिनों के बाद चंद्रमा पर सूर्यास्त हो जाएगा एवं रात का तापमान -238 डिग्री तक चला जाता है। इस वजह से रोवर चार्ज नहीं हो पाएगा।
- इन 14 दिनों में लैंडर एवं रोवर चंद्रमा की सतह पर नियर सरफेस प्लाज्मा डेंसिटी के आयंस एवं इलेक्ट्रोंस का अध्ययन करेगा। इससे हमें चांद के वातावरण के बारे में जानकारी मिल पाएगी।
- इसके अलावा चंद्रमा के सतह की थर्मल प्रॉपर्टीज का भी अध्ययन किया जाएगा। इससे पता चलेगा कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य की रोशनी का क्या प्रभाव पड़ता है।
- वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ का भंडार होगा। वहां पानी की खोज भी भारत की चंद्रयान-1 ने ही की थी।
- चंद्रयान 3 “चंद्र भूकंपिय गतिविधि उपकरण” के द्वारा चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों का भी अध्ययन करेगा।
- The Alpha Particle X-ray Spectrometer (APXS) के माध्यम से चंद्रमा की मिट्टी और चट्टानों में मैग्नीशियम, अल्युमिनियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम और लोहे जैसे तत्वों का अध्ययन करेगा।
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