बिहार में जारी जाति सर्वेक्षण डेटा के बाद पिछड़ा वर्ग एवं अत्यंत पिछड़ा वर्ग के राजनीतिक खेल को समझें।

बिहार सरकार द्वारा सोमवार 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर बिहार की जाति सर्वेक्षण डेटा जारी किया। बिहार सरकार द्वारा जारी किए गए जाति सर्वेक्षण के इन आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में सबसे अधिक आबादी अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) 36.01% की है। इसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) 27.12%, अनुसूचित जाति (SC) 19.65%, सामान्य आबादी 15.52% और अनुसूचित जनजाति (ST) 1.68% है। बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जाति सर्वेक्षण डेटा जारी करने को ऐतिहासिक कदम बताया। जबकि बीजेपी ने कहा कि इसमें कुछ भी नया नहीं है।

विपक्ष पिछले कुछ समय से जाति जनगणना की मांग केंद्र सरकार से कर रहा था। इसका सीधा सा मतलब समझा जा सकता है कि जाति जनगणना के आधार पर राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने उम्मीदवारों मैदान में उतरेगी। पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण को देखने से पता चलता है, कि सभी पार्टियों की प्राथमिकता सूची में EBC उच्च स्थान पर है।

आने वाले चुनावों में अत्यंत पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर विशेष नजर

पिछले विधानसभा चुनाव के समय जनगणना के अभाव में एक अनुमान के मुताबिक बिहार में EBC की जनसंख्या लगभग 25% थी। पिछले विधानसभा चुनाव में RJD और JD(U) के उम्मीदवारों की सूची में लगभग एक चौथाई उम्मीदवार, क्रमशः 24% और 26%, EBC के उम्मीदवार थे।

अत्यंत पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या को राजनीतिक पार्टियां फ्लोटिंग वोटर मानती है। इन्हें हमेशा ही सभी राजनीतिक पार्टियां लुभाती रही हैं। राज्य भर में उनकी बिखरी हुई आबादी और एक सर्वव्यापी नेता की कमी के कारण अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) के वोटों को फ्लोटिंग वोट के रूप में देखा जाता है। अधिकांश पार्टियों ने प्रमुख जाति सहनी और धानुक को प्राथमिकता दी।

राज्य में वोट जाति के आधार पर बंटे होने के कारण, EBC मतदाता अक्सर निर्णायक होते हैं। इस जाति सर्वेक्षण डेटा के आने के बाद आने वाले चुनावों में सभी राजनीतिक पार्टियों द्वारा अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी को ध्यान में रखते हुए EBC के उम्मीदवारों पर विशेष नजर होगी।

जाति सर्वेक्षण डेटा के बाद EBC, OBC का खेल

2020 के विधानसभा चुनाव में RJD ने महागठबंधन के साथ में जिन 144 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, उनमें से 58 (40%) यादव उम्मीदवार थे। जबकि 17 (12%) मुस्लिम उम्मीदवार थे। इसके अलावा 12 कुर्मी और 15 कुशवाह उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारा था । RJD के पास 144 सीटों (8.33%) पर 12 उच्च जाति के उम्मीदवार थे।

जबकि भाजपा के 110 उम्मीदवारों की सूची में 50 ऊंची जातियां और 17 OBC उम्मीदवार थे। भाजपा का यह अकड़ा 45% था। जबकि JDU ने अपनी 115 उम्मीदवारों की सूची में 18 (15.%) ऊंची जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। भाजपा ने ओबीसी समूहों से 4-4 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार यादवों की संख्या कुल आबादी का 14.27% है।

इस तरह समझा जा सकता है कि भाजपा और JD(U) ने अपने अपने मूल आधार समर्थन वाली आबादी जैसे भाजपा ने उच्च जाति-बनिया और OBC, और RJ(D) ने लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) पर पर बड़ा भरोसा किया है।

सारांश

बिहार के जाति सर्वेक्षण डेटा के हिसाब से राज्य में अति पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग को मिलाकर लगभग 64% आबादी है। यदि इसमें SC और ST की 20% आबादी को मिला दिया जाए तो यह आंकड़ा तकरीबन 85% होता है। बिहार की मौजूदा सरकार एवं विपक्षी पार्टियां आने वाले चुनावों में EBC+OBC के फेक्टर से चुनाव में जीत हासिल करना चाहेंगी। इसी तरह से कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों द्धारा जातिगत जनगणना (जाति सर्वेक्षण डेटा) के आंकड़ों को जनता के सामने रखकर अत्यंत पिछड़ा वर्ग एवं अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी को आकर्षित करने के प्रयास में होगी।

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