मणिपुर हिंसा: आखिर क्यों हो रही है यह हिंसा, सेना ने मोर्चा संभाला, राज्य में इंटरनेट सेवाएं स्थगित।

मणिपुर हिंसा: मणिपुर में हुई हिंसा को लेकर केंद्र सरकार हरकत में आ गई। मामले की गंभीरता को समझते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य के मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह से बात की। उन्होंने मणिपुर में हुई हिंसा की एवं उसमें हुई आगजनी को लेकर मुख्यमंत्री से जानकारी मांगी। राज्य में बढ़ती हुई हिंसा को देखते हुए असम राइफल के जवानों को तैनात कर दिया गया है। असम राइफल के जवानों ने मोर्चा संभालते हुए हिंसा प्रभावित इलाकों से 4000 से अधिक लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला। मणिपुर में मेटेई समुदाय के लोगों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग हो रही है इसी के विरोध में प्रदर्शन किया गया इसी प्रदर्शन के दौरान सामान्य और अनुसूचित जनजाति के लोगों में हिंसा भड़क गई। इस घटना के बाद मणिपुर के कई जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया। इसके अलावा मणिपुर में इंटरनेट सेवाएं भी 5 दिन के लिए स्थगित कर दी गई है।

कैसे भड़की ये मणिपुर हिंसा

मणिपुर राज्य में हुई हिंसा की शुरुआत 3 मई से हुई जब मणिपुर के छात्र संगठन The All Tribal Student Union (TATSU) ने आदिवासी एकता मार्च में काला। TATSU द्वारा यह मार्च मेटेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग के खिलाफ़ निकाला गया था। इस रैली में हजारों प्रदर्शनकारी शामिल हुऐ थे। इस मार्च के दौरान ही मणिपुर के आदिवासियों और गैर आदिवासियों के बीच हिंसा भड़क गई। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रण करने के लिए आंसू गैस के गोले भी दागे और जब हिंसा पर काबू नहीं पाया जा सका तो 3 मई की रात को ही मणिपुर सरकार ने केंद्र सरकार से सेना की मांग की और सेना ने मोर्चा संभालते हुए हिंसा प्रभावित कई इलाकों पर हालात पर काबू पा लिया।

आख़िर क्यों मणिपुर का मेटेई समुदाय ST कैटेगरी में शामिल होना चाहता है ?

8 याचिकाकर्ताओं के द्वारा अपनी पैतृक भूमि, परंपराओं संस्कृति और विरासत को बचाने के लिए मेटेई समुदाय को ST का दर्जा देने के लिए हाईकोर्ट में अपील की थी। जिसके बाद मणिपुर उच्च न्यायालय ने 19 अप्रैल को एक फैसला सुनाया जिसमें कोर्ट ने राज्य की बीजेपी सरकार को 4 हफ्तों के भीतर मेटेई समुदाय को ST कैटेगरी में शामिल करने को लेकर विचार प्रस्तुत करने को कहा। इस फ़ैसले के पीछे कोर्ट का मत था कि मेटेई समुदाय को 1949 से पहले आदिवासी दर्जा प्राप्त था। जब मणिपुर रियासत का भारत में विलय हुआ तो उन्होंने पुनः स्थिति बहाली की मांग की।
अधिकांश मेटेई ने हिंदू धर्म को अपनाया और बाद में भारतीय संघ में शामिल हो गए तो उन्होंने सामान्य श्रेणी में रहने का फैसला किया था लेकिन सभी ने अनुसूचित जाति का दर्जा चुनने का फैसला नहीं किया। अब पड़ोसी देशों और राज्यों से अप्रवासियों (कानूनी और अवैध दोनों) की आमद के साथ, मेटेई समुदाय का मानना ​​​​है कि ST श्रेणी जो भारतीय संविधान में पूर्वोत्तर क्षेत्र में एसटी के भूमि अधिकारों की रक्षा करती है, कम से कम उनकी रक्षा करेगी।

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मणिपुर घाटी, जहां कोई भी व्यक्ति जमीन खरीद सकता है क्योंकि यह संरक्षित भूमि अधिकारों के अंतर्गत नहीं आता है। जैसे ST के पास कई पूर्वोत्तर राज्यों में है। दूसरी ओर आदिवासी घाटी में जमीन खरीद सकते हैं तो भारत के अन्य हिस्सों के प्रवासी भी खरीद सकते हैं, जबकि मेटेई समुदाय पहाड़ियों में जमीन नहीं खरीद सकता है जो हममें से कई लोगों के लिए अनुचित है। मणिपुर और देश के अन्य हिस्सों से लोगों के पलायन और बसने के साथ इम्फाल घाटी अधिक से अधिक घनी होती जा रही है। यह उचित नहीं है कि मेटेई इन सब को सहन करें, जबकि पहाड़ियों में केवल आदिवासियों की रक्षा की जाती है। मेइती चाहते हैं अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त होने से मेटेई समुदाय को को स्वत: ही भारतीय संविधान में उनके भूमि अधिकारों का संरक्षण मिल जाएगा। बता दें कि मणिपुर की कुल आबादी का 53% हिस्सा ऐसा है जो मेटेई समुदाय को ST कैटेगरी का दर्जा देने के विरोध में है।

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