Manipur Violence : मंत्री के गोदाम में आग लगने से शहर में मचा हड़कम्प, अमित शाह ने बुलाई सर्वदलीय बैठक, आखिर कब थमेगी ये हिंसा।

Manipur Violence : पूर्वोत्तर भारत का राज्य मणिपुर कई हफ्तों से हिंसक अशांति से जूझ रहा है। बढ़ती हिंसा में 110 से अधिक लोगों की जान चली गई, 3,000 से अधिक लोग घायल हो गए और 40,000 से अधिक लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस संकट ने देश को झकझोर दिया है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है।

मणिपुर के उपभोक्ता मामलों मंत्री के निवास पर हमला

हाल ही में मणिपुर के उपभोक्ता एवं खाद्य विभाग मंत्री एल सुसिन्द्रो (L Susindro) के घर पर हुए हमले एवं पिछले कुछ दिनों से लगातार सिलसिलेवार तरीके से मंत्रियों को टारगेट करके किए जा रहे हमलों की वजह से पूरे राज्य में हड़कप मचा हुआ है। शनिवार को भीड़ ने उनके निजी गोदाम और वहां खड़ी दो गाड़ियों में आग लगा दी. सुरक्षा बल मौके पर पहुंचे और मंत्री के घर में घुसने की कोशिश कर रही भीड़ को तितर-बितर कर दिया। इस घटना ने मणिपुर में बढ़ती हिंसा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। हालांकि इस घटना में किसी हताहत होने की कोई ख़बर नहीं है।

गौरतलब है कि बीते 14 जून की रात को इसी तरह अराजक तत्वों की भीड़ ने राजधानी इंफाल में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री आरके रंजन सिंह के आवास को इसी तरह आप के हवाले कर दिया था। हालांकि घटना के समय मंत्री अपने आवास पर उपस्थित नहीं थे।

अमित शाह ने बुलाई सर्वदलीय बैठक

पिछले 52 दिनों से जारी हिंसा और एक के बाद एक होते जा रहे मंत्रियों के आवासों पर हमला सरकार के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इसी वजह से सरकार ने आनन फानन में हिंसा पर लगाम लगाने के लिए आज दिल्ली में सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है. संसद भवन में हो रही इस बैठक में विभिन्न राजनीतिक दलों के कई प्रमुख नेता शामिल हुये। बैठक का नेतृत्व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कर रहे हैं, जिसमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय और संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी भी शामिल हैं। बैठक में मणिपुर में मौजूदा कानून-व्यवस्था की स्थिति पर चर्चा करने और राज्य में शांति बहाल करने के तरीके खोजने की उम्मीद है। मणिपुर के मौजूदा हालातों को देखते हुए गृह मंत्री द्वारा बुलाई गई यह सर्वदलीय बैठक लगभग 3 घंटे तक चली।

TMC सांसद डेरेक ओ’ब्रायन, शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, AAP सांसद संजय सिंह, RJD सांसद मनोज कुमार झा, NCP महासचिव नरेंद्र वर्मा, मणिपुर NCP प्रमुख सोरन इबोयेमा और CPI (M) सांसद जॉन ब्रिटास सहित कई विपक्षी नेता भी इस बैठक में शामिल हुए हैं। हालाँकि, CPI जैसी कुछ पार्टियों की अनुपस्थिति ने इस सर्वदलीय बैठक की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। CPI सांसद बिनॉय विश्वम ने बैठक में उनकी पार्टी को आमंत्रित नहीं करने के लिए भाजपा की आलोचना की।

Manipur Violence पर कांग्रेस ने सरकार की नियत पर उठाए सवाल

मणिपुर में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी ने Manipur Violence की स्थिति से निपटने के तरीके को लेकर सत्तारूढ़ सरकार की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने सरकार पर पक्षपातपूर्ण होने और हिंसा रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया है। उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की भी मांग की है.

उन्होंने कहा कि मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने 2002 से 2017 तक तीन बार सीएम के पद पर रहकर मणिपुर को विकास और शांति की राह पर लाने का काम किया है। उन्होंने इस बैठक में घोषणा की है कि वे कांग्रेस की ओर से पक्ष रखेंगे। उनके अनुभव और गहरे ज्ञान को देखते हुए, सभी को उनकी बात को गंभीरता से सुनने की आवश्यकता है।

इस मुद्दे पर बोलते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि मणिपुर 52 दिनों से जल रहा है और गृहमंत्री ने अब जाकर सर्वदलीय बैठक बुलाई है। अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री स्थिति पर ध्यान दें और हस्तक्षेप करें। हालांकि सरकार ने अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का वादा किया है.

हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मणिपुर में फिलहाल राष्ट्रपति शासन लगने की संभावना नहीं है। असम के CM हिमंत बिस्वा सरमा की गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद यह फैसला लिया गया है. जबकि केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह राज्य में शांति लाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी, राष्ट्रपति शासन नहीं लगाने के फैसले ने संकट को हल करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

सोनिया गांधी ने की थी शांति बनाए रखने की अपील

कांग्रेस पार्टी ने Manipur Violence पर सरकार के फैसले की आलोचना की है और इसे मजाक बताया है. उन्होंने तर्क दिया है कि राज्य में शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए मणिपुर की पक्षपातपूर्ण सरकार को हटाना और राष्ट्रपति शासन लगाना जरूरी है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सोनिया गांधी के मणिपुर की जनता को संबोधित करने के बाद ही सरकार जागी.

21 जून को कांग्रेस पार्टी की नेता सोनिया गांधी ने एक वीडियो संदेश जारी कर मणिपुर के लोगों से शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की. उन्होंने Manipur Violence को राष्ट्र की अंतरात्मा पर गहरा घाव बताया और सरकार से क्षेत्र में शांति बहाल करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया। उनकी अपील के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ट्वीट कर स्थिति पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने की बात कही.

Manipur Violence की प्रमुख वजह

सबसे पहले, मणिपुर में हिंसा (Manipur Violence) के मूल कारणों को समझना आवश्यक है। राज्य में जातीय और राजनीतिक तनाव का जटिल इतिहास दशकों से बना हुआ है। क्षेत्र के मूल निवासी, जो विभिन्न जनजातियों से हैं, स्वायत्तता और आत्मनिर्णय के लिए लड़ रहे हैं। मणिपुर के निचले मैदानी इलाकों में मैतेई लोगों की बहुतायत है, जो राज्य की राजनीति और नौकरशाही पर हावी हैं। आज़ादी के बाद से, इस क्षेत्र में कई सशस्त्र विद्रोही समूह उभरे हैं, जो एक अलग राज्य, संसाधनों में बड़ी हिस्सेदारी और अपनी पहचान और संस्कृति को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं।

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हिंसा के 5 मुख्य कारण

  1. मैतेई समुदाय के जनजाति का दर्जा: मणिपुर में मैतेई, नगा और कुकी तीन प्रमुख समुदाय हैं। मैतेई समुदाय में हिंदू आधारित बहुमत है, जबकि नगा-कुकी समुदाय ईसाई धर्म को मानते हैं और ST वर्ग में आते हैं। इन दोनों समुदायों के बीच जनजाति के मुद्दे पर विवाद है, जहां मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा मिलने की मांग है।
  2. ड्रग तस्करी: मणिपुर में मैतेई समुदाय के लोग रोजगार के लिए जंगलों को काटने और अफीम की खेती करने में लगे हुए हैं। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का एक केंद्र बन गया है। इस समस्या ने नगा-कुकी जनजाति के और अधिक विरोध को बढ़ा दिया है, जिन्होंने एक आर्म्स ग्रुप बनाया है और मैतेई समुदाय के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
  3. आरक्षण के मुद्दे: नगा-कुकी जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में है। उनका दावा है कि मैतेई समुदाय को पहले से ही बहुलियत इलाकों में आरक्षण मिल रहा है और अगर इसे और बढ़ा दिया जाएगा तो उनके अधिकारों को प्रभावित किया जाएगा। इससे उनका नगा-कुकी जनजाति के बीच विरोध और तनाव बढ़ सकता है।
  4. सियासी समीकरण: मणिपुर में 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं, जबकि 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। यह सियासी समीकरण विवादों को और भी जटिल बना रहा है, क्योंकि पार्टियां अपने आरक्षण नीतियों के आधार पर जनजाति समुदायों के समर्थन में खड़ी हो रही हैं और विवादों को राजनीतिक रूप दे रही हैं।
  5. इम्फाल घाटी: मैतेई समुदाय इम्फाल घाटी के करीब 10% इलाके में अधिकारी हैं। यहां उनकी बहुलता है और उन्हें आरक्षण मिलने से नगा-कुकी जनजाति के अधिकारों पर प्रभाव पड़ेगा।

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