Chandrayan-3 Launch:आज लॉन्च होगा चंद्रयान-3, क्यों फेल हुआ था चंद्रयान -2, अब क्या बदलाव किए गए हैं?

Chandrayan-3 Launch : काफ़ी लंबे इंतजार के आखिर वह घड़ी आई गई जब भारत के वैज्ञानिक एक और उपलब्धि हासिल करने को तैयार हैं। भारतीय समय अनुसार आज शुक्रवार 14 जुलाई दोपहर 2:45 पर Chandrayan-3 Launch किया जायेगा। धरती से 3,84,400 किलोमीटर दूर चंद्रमा की सतह पर Chandrayaan-3 की लैंडिंग कराना वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती होगी।

बता दें कि आज से 4 साल पहले 15 जुलाई 2019 को इसी तरह Chandrayaan-2 की लॉन्चिंग की गई थी। इसके 6 सितंबर 2019 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने का अनुमान भी लगाया गया था। लेकिन वह सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होकर ISRO से संपर्क टूट गया था।

दुनिया में अमेरिका, चीन और रूस जैसे तीन देश ही है जो अब तक चंद्रमा पर सफल लैंडिंग करा सके हैं। भारत भी अब चंद्रमा पर सफल लैंडिंग कराकर इन देशों की लिस्ट में शामिल होने को तैयार है। हालांकि वैज्ञानिकों के लिए यह काफी मुश्किल भरा समय होता है लेकिन Chandrayaan-2 में की गई गलतियों के अनुभव से Chandrayaan-3 की सफल लैंडिंग कराने में वैज्ञानिकों को काफी मदद मिलेगी।

Chandrayaan-2 की असफलता के कारण

2019 में किए गए इस मिशन के दौरान अनुमान था कि लैंडर के साथ रोवर भी चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। जिसकी सहायता से रोवर भी इधर-उधर आसानी से जा सकता था एवं जानकारियां एकत्रित कर सकता था। इसके बाद यह जानकारियां उपग्रह (ऑर्बिटर) के पास जाती। ऑर्बिटर के माध्यम से यह जानकारियां पृथ्वी तक पहुंचती। लेकिन उस वक्त ऐसा हो ना सका क्योंकि ऑर्बिटर तो अपनी कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंच गया लेकिन लेंडर की सॉफ्ट लैंडिंग ना होने की वजह से मिशन फेल हो गया था।

Chandrayaan 2 में 3 चीजें महत्वपूर्ण रूप से जुड़ी हुई थी। उपग्रह, लेंडर (जिसका नाम विक्रम था) और तीसरा रोवर (जिसका नाम प्रज्ञान था)।

978 करोड़ की लागत से निर्मित Chandrayaan-2 दुनिया का पहला ऐसा मिशन था जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से 600 किलोमीटर की दूरी पर लैंडिंग कराना था। चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव चंद्रमा की सतह का भाग होता है जहां सूरज की रोशनी ना के बराबर पहुंचती है। यानी हमेशा अंधेरा छाया रहता है। इसे चंद्रमा का Dark Side भी कहते हैं।

भारतीय वैज्ञानिकों ने chandrayaan-2 की चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग को लेकर अनुमान लगाया था लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह यान चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने से पहले ही संपर्क टूट गया। जिसकी वजह से वह अनियंत्रित होकर चंद्रमा की सतह से तेजी से टकराया जिसकी वजह से वह सुरक्षित नहीं रहा।

इसके अलावा चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर पहले ही सॉफ्टवेयर की समस्याओं की वजह से इससे संपर्क टूट गया। जिसकी वजह से सेंसर का इस्तेमाल नहीं हो सका। परिणाम स्वरूप लगभग 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ रहे इस लैंडर की गति को कम न किया जा सका। यह चंद्रमा की सतह पर तेजी से जाकर टकराया। सफल लैंडिंग के लिए इसकी गति 200 किलोमीटर प्रति घंटे से कम करके लगभग 7 किलोमीटर प्रति घंटे तक लाना था। संपर्क टूटने की वजह से सेंसर ने काम करना बंद कर दिया एवं यह सफल हो गया।

Chandrayan-3 Launch से पहले किए गए बदलाव

Chandrayaan-2 की असफलता के बाद इसरो के वैज्ञानिक रुके नहीं। उन्होंने Chandrayaan-2 का फॉलोअप मिशन शुरू किया। Chandrayaan-3 में लॉन्चिंग व्हीकल भी Chandrayaan-2 वाला GSLV मार्क 3 का ही उपयोग किया गया है अब इसका नाम LVM 3 रखा गया है।

इसके अलावा Chandrayaan-3 ऑर्बिटर का उपयोग नहीं किया गया है। क्योंकि Chandrayaan-2 के साथ भेजा गया ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की सतह पर मौजूद है Chandrayaan-3 में इसी ऑर्बिटर का उपयोग किया जाएगा। इसके अलावा कुछ महत्वपूर्ण बदलाव भी किए गए हैं जैसे –

  • Fuel carrying capacity यानी इंधन ले जाने की क्षमता को बढ़ाया गया है।
  • Landing leg यानी लैंडर के पैरों को मजबूत किया गया है।
  • लैंडिंग करने के 2 किलोमीटर पहले ही सेंसर एक्टिवेट हो जाएंगे।
  • ऊर्जा की आवश्यकता को देखते हुए बड़े सोलर पैनल भी लगाए गए हैं
  • सॉफ्टवेयर में भी नई तकनीकी का उपयोग किया गया है।
  • लैंडिंग स्पॉट को भी बदलने का विकल्प होगा। यानी पहले से तय जगह पर उतरने में कोई परेशानी हो तो लैंडिंग की जगह में बदलाव भी किया जा सकता है।
  • लैंडिंग के टाइम में भी बदलाव किया जा सकता है।
  • एंटी ग्रेविटी थ्रस्ट का भी उपयोग किया गया है यानी वह चंद्रमा की सतह पर तेजी से नहीं उतरेगा।

Chandrayaan-3 से क्या हासिल होगा।

  • Chandrayaan-3 कि चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग होने के बाद चंद्रमा की सतह पर थर्मल कंडक्टिविटी तापमान की स्टडी की जा सकेगी।
  • चट्टानी परत (Rockey Crust) का अध्ययन भी कर सकेंगे।
  • चंद्रमा पर भूकंप की जानकारी भी प्राप्त कर सकेंगे।
  • चंद्रमा की सतह पर उपलब्ध अमोनिया, मीथेन, सोडियम, मरकरी, सिल्वर, क्रिस्टलाइज वाटर आदि की जानकारी भी प्राप्त होगी।
  • चंद्रमा की सतह का रासायनिक विश्लेषण भी किया जा सकेगा।

जानकारी के लिए बता दें कि इससे पहले सन 2008 में ISRO द्वारा Polar Satellite Launch Vehicle से PSLC – C11 की मदद से Chandrayaan-1 को चंद्रमा पर सफलतापूर्वक लॉन्च किया जा चुका था। यह श्रीहरिकोटा सभी सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से छोड़ा गया था। भारत द्वारा भेजे गए Chandrayaan-1की मदद से ही हमें पता चला था कि चंद्रमा की सतह पर पानी मौजूद है। अब Chandrayan-3 Launch होने से ISRO के वैज्ञानिकों को काफी उम्मीद है।

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